नदी की महिलाएं

क्‍या एक अकेली औरत बहाव बदल सकती है... पूरी तरह से?

जब उत्तराखंड में कोसी नदी के पानी का स्तर कम होना शुरू हुआ, तो नदी पर निर्भर ग्रामीणों ने इसका सीधा खामियाजा भुगता। समस्‍या घातक हो गई होती यदि एक महिला – बसंती ने अथक प्रयास न किया होता।

बसंती ने 2003 में पढ़ा था कि कैसे कोसी क्षेत्र में वनों की कटाई इसे 2010 तक सूखी नदी बना सकता है। उसने और अधिक शोध किया और पाया कि जंगल की आग और पेड़ों की कटाई नदी के पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन प्रभावित कर रहे थे। इस चेतावनीपरक खोज ने ही उसे कार्रवाई करने के लिए प्रेरित किया था। उसने लकड़ी काटने के लिए जंगल में नीचे जाने वाली ग्रामीण महिलाओं से मिलना शुरू किया, उन्हें अंधाधुंध लकड़ी कटाई के बारे में लेख दिखाए और बात करने की कोशिश की।

आखिरकार, नदी के संरक्षण के लिए वह वन संरक्षण के महत्व के बारे में महिलाओं को शिक्षित करने में सफल रही। उसने उनसे छोटे समूह बनाने और और जंगल की निगरानी करने का अनुरोध किया। वह महिलाओं को यह समझाने में भी सफल रही कि हरे पेड़ों विशेषकर ओक की लकड़ी को काटने से बचें। उसने और महिलाओं के समूहों ने प्रारंभिक चरणों में अन्य ग्रामीणों का कुछ विरोध भी झेला, आखिरकार, प्रक्रिया इस हद तक सुव्यवस्थित हुई कि वन अधिकारियों ने भी उनका साथ देने का फैसला लिया क्‍योंकि दोनों पक्ष एक ही मकसद के लिए लड़ रहे थे।

बसंती के मार्गदर्शन में, ग्रामीण जंगल को आग से बचाने और हरे पेड़ काटना छोड़कर जंगल की रक्षा करने में सहायता करने में जुट रहे थे। उसके प्रयासों के परिणामस्वरूप, वन में गुणकारी देवदार के पेड़ उगने शुरू हो गए और ऐसे नए सोते फूटने शुरू हो गए, जो पानी के एक स्‍थायी स्रोत का काम करते हैं।

एक महिला ने अन्‍य महिलाओं को जोड़ने और नदी को बचाने के लिए मना लिया। एक महिला ने जिम्मेदारी ली, और कुछ ही समय में, अन्य महिलाएं उसके नक्‍शेकदम पर चलने लग गई थीं। यह प्रेरक कहानी केवल यह सिद्ध करती है कि संख्या में अपार शक्ति है, कि एक साथ मिलकर महिलाएं पहाड़ों को हिला सकती हैं या इस मामले में, बहाव बदल सकती हैं!

यदि एक महिला नदी के बहाव को फिर से शुरू कर सकती है, तो इस देश को बदलने के लिए महिलाओं को क्या रोक रहा है जो मतदान समूह का 49% हिस्‍सा हैं। # 49 की शक्ति

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